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हमीं से मुहब्बत हमीं से लड़ाई



19 जून, 2013

नितीश  जी के विश्वास मत का प्रस्ताव बिहार विधान सभा में पारित हो ही गया। होता भी क्यों नहीं ? आखिर तलाक के बाद भी पति पत्नी में प्यार तो रहता ही है ना। तलाक का मतलब ये थोड़े ही ना है कि प्यार ही ख़त्म हो गया। आखिर 17 साल का दाम्पत्य जीवन रहा है, जेडीयू और भाजपा का .इतनी मिठास को  पूरी तरह कड़वाहट में बदलने में थोडा समय तो लगेगा ही।

चाहते तो अपने 91 , राजद के 22 और  2 निर्दलीय कुल मिलाकर 115 मतों के साथ कड़ी टक्कर दे सकते थे भाजपा वाले. 126 के मुकाबले 115 कम नहीं होता . लेकिन पूर्व हो या वर्तमान, महबूबा तो महबूबा ही होती है ना . अब अपनी किसी हरकत से प्रेमिका की जग हंसाई हो, ये किसी भी प्रेमी के लिए डूब मरने वाली बात है। अब अपनी आँखों के सामने ऐसी जलालत कैसे देख सकते  थे।  सो कर दिया वाकआउट और अच्छे से बच गयी सरकार। दिखाने के लिए विरोध भी हो गया और सरकार के लिए प्रस्ताव पास करना आसान भी हो गया। अब आगे से सरकारी बिल ऐसे ही पास हुआ करेंगे क्या ?

लेकिन निर्मोही को देखो, एक भी तारीफ़ के बोल नहीं । अरे गुजरात वाले मोदी जी से नाराजगी है, लेकिन बिहार वाले मोदी जी से तो अच्छी जमती थी। एक बार मुस्कुराकर ही देख लेते उनकी तरफ़। सुकून तो आ जाता उनको कि चलो कुछ तो सिला मिला। अरे , दादा आडवाणी से तो कोई गिला नहीं है, उन्ही की थोड़ी प्रशंसा कर देते। लेकिन नहीं , उलटे अभी भी तीर चलाने से बाज नहीं आ रहे। कह रहे हैं कि कॉर्पोरेट की हवा से देश नहीं चलेगा। देश नहीं चलेगा तो प्रदेश में काहे बुला रहे हैं कॉर्पोरेट को ?

अब जिनसे नया नया ब्याह रचाए हैं उसका अतीत तो ऐसा रहा है कि उन्हीं को पानी पी पी कर कोसते हुए इनकी राजनितिक जिन्दगी यहाँ तक पहुंची है। इसके साथ किसी का गुजारा नहीं हुआ तो इनका कैसे होगा। लेकिन मजबूरी है। क्या करें ? अकेले जिंदगी थोड़े ही गुजरती है। किसी न किसी कंधे की जरूरत हो होती ही है। 2014 तक ही ये विवाह टिक जाए तो गनीमत है।

कहीं ऐसा न हो कि अगले साल फिर पुराने साथी के साथ ही घर बसाना पड़े।
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About मृत्युंजय श्रीवास्तव

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