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प्रभु का दूसरा रेल बजट - उम्मीद पर खरी ?


25 फ़रवरी 2016 

बड़ी बेसब्री से इंतजार था आज के दिन का कि माननीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु जी रेल बजट पेश करेंगे। उनके कार्यकाल का ये दूसरा रेल बजट है। हमने भी इनका नाम बहुत सुना था कि बड़े ही कार्यकुशल व्यक्ति हैं। इसीलिए माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इनको रेलवे जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी है जिसके बारे में कहा जाता रहा है कि ये हमेशा से घाटे में ही चलती रही है और घाटा भी हर साल बढ़ता ही जा रहा है। कुल मिलाकर इनसे बहुत उम्मीद थी कि ये रेलवे का कायाकल्प करेंगे और यात्रियों को सुविधाएं देंगे। बड़ी बड़ी योजनाओं को क्रियान्वित करने में और उसके फलीभूत होने में ज्यादा समय लगता है ये तो सत्य है. लेकिन त्वरित निर्णय लेकर कुछ क्षेत्रों में राहत तो दी ही जा सकती है।

विरोधी दलों को तो सरकार के हर कदम में आज कल नुख्स ही दीखता है। आजकल विरोधी दल शायद ही कभी सरकार के किसी कदम की तारीफ करते हैं। लेकिन एक आम नागरिक की दृष्टि से यह बजट कैसा है इस पर गौर करने की जरूरत है। 

किराया पिछले साल भी नहीं बढ़ा था, इस साल भी नहीं बढ़ा. लेकिन पिछले बजट से इस बजट के बीच में कई मौके ऐसे आये जब यात्रियों पर पैसे का बोझ बढ़ा। फिर ये कैसी राहत हुई ? टिकट वापसी के नियम बदल दिए गए और वापसी शुल्क भी बढ़ा दिया गया। जब भी टिकट वापसी के नियम बदलते हैं और वापसी शुल्क वृद्धि की जाती है तो इसके पीछे दलील दी जाती है कि इससे दलालों पर अंकुश लगेगा। अनारक्षित श्रेणी के टिकट की वापसी में 30 रुपये काट लिए जाने लगे। अब अनारक्षित टिकट में भी दलाल होते हैं क्या जो उनको रोकने के लिए ऐसा किया गया ?  छोटी दुरी में यात्रा किराया कई बार 30 रुपये से कम होता है।  तब क्या होगा ? आपकी ट्रेन छूट गयी तो आपके पैसे गए ? यह किस तरह से सही ठहराया जायेगा ? 

दलालों पर नियंत्रण करने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाये जाते सिर्फ तरह तरह के शुल्क में वृद्धि कर दी जाती है। जिसका नुकसान यात्रियों को ही उठाना पड़ता है। दलाल की सक्रियता में शायद ही कमीं आती होगी। रेलवे टिकट को दलाल-मुक्त करने का सबसे आसान तरीका है कि ट्रेनों में सीटों की संख्या माँग के अनुसार बढ़ाई जाए. वो तो हो नहीं पाती। जब यात्रियों को टिकट खुद से ही बुकिंग काउंटर या इंटरनेट से मिलने लगेगी तो कोई दलालों के पास क्यों जायेगा ? जब मांग ज्यादा और आपूर्ति कम होती है तभी दलालों की सक्रियता बढ़ती है। टिकट लेते समय यात्री का पूरा नाम लिखना जरुरी हो। ए. कुमार , बी. कुमार जैसे नामों से टिकट न दिए जाएँ। अगर अक्षरों की संख्या की बाध्यता हो तो भी पहला नाम पूरा लिखा जाए। इससे दलालों के लिए काल्पनिक नामों से टिकट खरीदना और बाद में बेचना थोड़ा मुश्किल होगा। 

पहले अनारक्षित टिकटें 3 दिन पहले से ही किसी भी स्टेशन से ली जा सकती थी। इससे यात्री अपनी सुविधा अनुसार पास के टिकट काउंटर से टिकट ले लिया करते थे। इससे टिकट काउंटर पर भी लम्बी लाइने नहीं लगती थी और यात्री भी यात्रा के दिन की अफरा तफरी से बच जाते थे। लेकिन पिछले दिनों मेरे मित्र अनारक्षित टिकट लेने गए तो उन्हें बताया गया कि यात्रा के दिन ही टिकट लेना होगा। मतलब ये सुविधा भी ख़त्म। 

पिछले एक साल में जब से प्रभुजी ने कार्यभाल संभाला है, यात्रियों की समस्या जस की तस है। स्टेशनों पर वही गन्दगी का अम्बार लगा रहता है। शायद ही कोई ट्रेन समय पर पहुंचती है। कई बार पहुँच तो जाती है लेकिन प्लेटफार्म पर जगह न होने या फिर किसी और कारण से स्टेशन के आऊटर सिग्नल पर गाड़ियों को काफी देर तक रुकना पड़ता है। अगर यात्रा समय पर पूरी हो जाए तो यात्री यात्रा के दौरान हुई सारी परेशानी को भूल जाता है। लेकिन यहाँ तो रेल गाड़ियों की लेट लतीफी रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। इस दिशा में प्रभु जी से बहुत उम्मीद थी कि ट्रेन समय से गंतव्य स्थान पर पहुँच सके इसके लिए कुछ ठोस कदम का प्रस्ताव अपने इस बजट में रखेंगे। 

बजट में मंत्री जी कहते हैं कि 2020 तक आशा करते हैं कि गाड़ियों में आवश्यकता अनुसार आरक्षण मिल पायेगी , माल गाड़ी समय सारिणी के अनुसार चलने लगेगी, समय पालन 95% तक पहुँच पायेगी। लेकिन इनकी सरकार 2019 तक ही है। मतलब कि इनकी योजनाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी 2019 में बनाने वाली नयी सरकार की होगी ?

महिला सुरक्षा के लिए सवारी डिब्बों में मध्य भाग को आरक्षित किया गया है। इससे क्या होगा ? रेलवे सुरक्षा बलों की चौकसी क्यों नहीं बढ़ाई जाती ? रेलवे स्टेशनों पर वाई-फाई की सुविधा देने की बात की जा रही है। जिनको इंटरनेट की सुविधा का इस्तेमाल करना होता है उनके पास पहले से ही डोंगल या इंटरनेट पैक मौजूद होता है। वो लोग सिर्फ स्टेशन पर ही इंटरनेट का प्रयोग नहीं करते। अच्छा होता कि ये पैसे किसी और मद में खर्च किये जाते। PRS  टिकटों को 139 पर फोन  करके रद्द करने की सुविधा दी गयी है , यह निश्चित रूप से सराहनीय कदम है। इससे यात्रियों का समय बचेगा। 

इस बजट में सफर को आसान एवं आनंददायक बनाने के विभिन्न व्यवस्थाओं पर जोर दिया गया है। मसलन , वाई-फाई की सुविधा, साफ सफाई, चादर बिस्तर, खाना, शौचालय की सफाई, मोबाईल चार्जिंग के पोर्ट इत्यादि। यह सराहनीय प्रयास है। लेकिन यात्री की जो मूल समस्या है उस पर ध्यान नहीं दिया गया। यात्रा का मूल उद्देश्य सुरक्षित एवं समय  पर अपने गंतव्य पर पहुंचना होता है. ट्रेनों को समय पर कैसे पहुँचाया जायगा, दुर्घटनाओं में कमी कैसे लाई जाएगी इस पर यह बजट सामान्यतः मौन ही है। 
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