21 जून , 2015
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में अब ज्यादा दिन बाकी नहीं रह गए हैं। राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन की संभावनाएं तलाशी जा रही है और यह प्रक्रिया भी अपने निर्णायक चरण में है। यह चुनाव पिछले कुछ चुनावों से अलग होने वाला है। अलग इस मायने में कि पिछले कई चुनावों में एक दूसरे धूर प्रतिद्वंदी रह चुके लालू जी और नीतीश जी की पार्टी इस बार साथ साथ चुनाव लड़ रही है और साथ साथ चुनाव लड़ने वाले भाजपा और जेडीयू इस बार एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे।
इस बार मतदाता के लिए भी थोड़ी दुविधा की स्थिति है। पूर्व के चुनाव में लालूजी सामाजिक न्याय की बात करते थे , साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई में अपने आपको एक योद्धा के रूप में जनता से सामने पेश करते थे। नीतीश जी पर सांप्रदायिक पार्टी के साथ मिले होने का आरोप लगाते थे, इनके विकास के दावे को खोखला बताते थे । दूसरी तरफ नीतीश जी और भाजपा वाले विकास की बात करते थे। लालू जी की पार्टी के प्रदेश में 15 साल के शासन को जंगलराज कहते थे। अपने कार्यकाल को सुशासन कहते थे। लेकिन इस बार स्थिति बिलकुल अलग हो गयी है। जंगल राज और सुशासन का अनोखा संगम हो गया है। नीतीश जी के लिए भाजपा फिर से सांप्रदायिक पार्टी हो गयी है। भाजपा भी नीतीश जी और लालूजी के गठजोड़ को अवसरवादिता बताने लगी है।
लेकिन जनता दुविधा में है कि इस बार किसको वोट करे ? इस चुनाव में दो धड़ा है , एक लालू जी और नीतीश जी का एवं दूसरा भाजपा के नेतृत्व में राजग का। मेरे जैसे लोगों के लिए लालू जी के साथ जाना तो असंभव ही है। लालू जी और राबड़ी जी के शासन काल में कितना विकास हुआ ये किसी से छिपा नहीं है। कानून और व्यवस्था की स्थिति कैसी थी इसका बखान स्वयं नीतीश जी करते नहीं थकते थे। लेकिन भाजपा भी कोई ज्यादा अलग नहीं है। भाजपा विकास की बात तो करती है लेकिन कितना विकास करती है ये केंद्र की सरकार द्वारा किये गए कार्य को देखकर आसानी से आकलन किया जा सकता है। तीसरा कोई विकल्प नहीं है जैसा कि दिल्ली के लोगों के पास था। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के रूप में एक सशक्त विकल्प था। लोगों को केजरीवाल जी की ईमानदारी , कर्तव्यनिष्ठा और भ्रष्टाचार से लड़ने के दावे पर भरोसा था। इसलिए लोगों ने उनको जोरदार समर्थन दिया। लेकिन बिहार में ऐसी कोई पार्टी या गठबंधन नहीं है जिस पर आँख मूँद कर जनता भरोसा करे। आम आदमी पार्टी पहले ही कह चुकी है की वो इस साल किसी चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी।
ऐसे में न चाहते हुए भी मजबूरी में भाजपा का समर्थन करना पड़ेगा।
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