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"आप" तो ऐसे न थे।

8 अप्रैल, 2015 

"आप" यानि आम आदमी पार्टी का गठन बड़े ही ऊँचे सिद्धांतों को ध्यान में रखकर किया गया था। वर्तमान समय में जितनी भी राजनितिक पार्टियाँ थीं उनमें बहुत सारी बुराइयाँ जैसे परिवारवाद, भ्रष्टाचार , अकर्मण्यता आदि आ जाने से जनता को एक स्वच्छ राजनीतिक पार्टी की जरूरत थी जिसमें किसी तरह की बुराई न हो। इसी समय में अन्ना जी के जनलोकपाल आंदोलन से सम्बद्ध कुछ लोगों ने एक ऐसी राजनीतिक पार्टी की परिकल्पना की जिसका नेतृत्व श्री अरविन्द केजरीवाल कर रहे थे। एक ऐसी पार्टी जिसमें भ्रष्टाचार का एक पैसा नहीं लगा हो , मिलने वाले हर चंदे की पक्की रसीद दी जाती हो या फिर चंदा चेक से लिया जाता हो, परिवारवाद का नामोनिशान न हो, सिर्फ और सिर्फ जनता की सेवा ही एक मात्र उद्देश्य हो। हर किसी को अपनी बात रखने का मौका मिले , जनता से पूछकर ही सारे कार्य किये जाएँ, कोई हाई कमान संस्कृति नहीं हो , आतंरिक लोकतंत्र हो आदि आदि। 

इन्हीं विचारों को ध्यान में रखते हुए आम आदमी पार्टी का गठन किया गया। चूँकि पार्टी के सिद्धांत ही इतने उच्च थे कि इस पार्टी से समाज के हर तबके के लोग जुड़े। बहुत से लोग तो अपनी अच्छी भली नौकरी को छोड़कर इस पार्टी में सिर्फ और सिर्फ जनसेवा की भावना से जुड़े। जनता ने भी इस पार्टी को भरपूर समर्थन दिया।  दिल्ली विधानसभा 2013  के चुनाव में पार्टी को २८ सीटें मिली जो बहुमत से थोड़े ही कम थी। जब अरविन्द ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया तो जनता में उसके प्रति थोड़ी नाराजगी तो हुई लेकिन पार्टी के लिए जनता का प्यार कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ ही गया।  दिल्ली विधानसभा 2015 के चुनाव में प्रचण्ड एवं अभूतपूर्व समर्थन के साथ पार्टी को जनता ने 70  में से 67  सीटों पर विजय दिलाई। 
परन्तु थोड़े समय से जो पार्टी में उठा - पटक चल रही है उससे चिंता होना स्वाभाविक है। एक एक करके लोग पार्टी को छोड़कर जा रहे हैं।  कह रहे हैं कि पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र नहीं है। सिर्फ और सिर्फ अरविन्द की ही बात मानी जाती है , मतलब की पार्टी अरविन्द केंद्रित हो गयी है। जो अरविन्द की बात से सहमत हो वो पार्टी में रहे अन्यथा पार्टी में उनके लिए को जगह नहीं। प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव पर पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप लगाये गए हैं। कुछ लोग राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक में मार पीट किये जाने के भी आरोप लगा रहे हैं। कहा जाता है कि जबरन अरविन्द के पक्ष और प्रशांत भूषण एवं योगेन्द्र यादव के विरोध में मतदान करवाये जा रहे थे। इतना होने के बावजूद भी इन दोनों के पक्ष में भी मत पड़े। जिन लोगों ने इनके पक्ष में मत डाले उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। 

इन दोनों से सहानुभूति रखने वालों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। आंतरिक लोकपाल एडमिरल राम दास जी को भी उनके पद से हटा दिया गया। इन सब बातों को देखकर मन सोचने को मजबूर होता है कि क्या यह वही पार्टी है जिसका गठन ऊँचे आदर्शों को ध्यान में रखकर किया गया था ? अरविन्द की नियत और निष्ठा पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। अरविन्द के व्यक्तित्व में जनसेवा कूट कूट कर भरी है। लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि आज की तारीख में आम आदमी पार्टी अरविन्द की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गयी है, चाहे यह जनता की भलाई के लिए ही क्यों न हो।
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