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बदनाम लोगों से मिलना जरूरी है क्या ?

15 जुलाई 2014

शास्त्रों में भी लिखा गया है कि निंदक नियरे राखिये। लेकिन कहीं नहीं लिखा कि बुरे लोगों से मेल जोल रखिये, मिलना जुलना कीजिये। लेकिन क्या हो गया है हमारे देश के कुछ लोगों को ? पहले हमारे युगपुरुष श्री अरविन्द केजरीवाल जी तौकीर रज़ा साहब से मिल आये, समर्थन देने की अपील की। लोगों ने कहा कि रज़ा साहब मुस्लिम समाज में बहुत लोग प्रिय हैं, इसलिए मुस्लिम मतदाताओं को अपनी पार्टी की तरफ आकर्षित करने के लिए ये मुलाकात करने गए थे। फिर हँगामा बढ़ा तो सफाई देने लगे कि ये तो बस शिष्टाचार मुलाकात थी।

अब कल ही परसों की बात है एक पत्रकार वैदिक साहब जो योगगुरु रामदेव जी के भी करीबी हैं, हाफिज सईद साहब से मुलाकात कर आये। ऊपर से दलील दे रहे हैं कि हमने सिर्फ चाय पी। सरकार भी इस मुलाकात से खुद को अनभिज्ञ बता रही है। कहा जा रहा है कि पत्रकार तो किसी से भी मिल सकता है। हो सकता है उनकी मंशा साफ़ रही हो लेकिन आखिर ऐसे लोगों से मिलना जरूरी है क्या ? कुछ लोग कह रहे हैं कि ये हाफिज सईद साहब का ह्रदय परिवर्तन करने गए थे , हाफिज साहब कह रहे हैं कि हिन्दुस्तानियों का दिल छोटा है। अरे साहब दुनिया में अच्छे लोगों की कमी है क्या ? अच्छे लोगों से मिल लीजिये।

बात यहीं तक थमती तो गनीमत थी, लेकिन वैदिक साहब ने एक विवादस्पद बयान भी दे दिया। किसी इंटरव्यू में कह रहे थे कि दोनों कश्मीर को मिलाकर आजाद कर देना चाहिए। मुलाकात करके आये तो कुछ हद कर बात कवर भी की जा सकती थी , कुछ लोगों ने इनको पाक साफ़ साबित करने की कोशिश भी की थी। लेकिन यह बयान तो रही सही कसर को भी पूरा कर देता है। अब पक्ष और विपक्ष के लोगों में बुरी तरह से ठन गयी है। पक्ष के लोग किसी तरह से मामला ठंडा करना चाह रहे हैं, लेकिन विपक्ष को तो बैठे बिठाये सरकार को घेरने का एक मुद्दा मिल गया।

कुछ भी हो, बड़े लोगों से इतनी अपेक्षा तो की ही जाती है की अपना आचरण संदेह के दायरे में न रखें।
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