12 जुलाई 2014
बड़े जोर शोर से आम चुनाव में प्रचारित किया जा रहा था कि अच्छे दिन आने वाले हैं. मतलब कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो हिंदुस्तान में अच्छे दिन आ जाएंगे। सरकार तो बन गयी लेकिन अच्छे दिन की सुगबुगाहट भी नहीं देखीं जाए रही थी। सिर्फ यूपीए सरकार द्वारा किये गए कार्य जो पूरे हो रहे थे उसका उद्घाटन कर रहे थे मोदी जी। समर्थकों ने दिल खोल कर इसका श्रेय मोदी जी की 10 -15 पुरानी सरकार को दिया।लेकिन जनता इस श्रेय को पचा नहीं पा रही थी। अब जनता इन नेताओं जितनी समझदार नहीं लेकिन थोडी बहुत अक्ल तो रखती ही है।
हम जैसे कुछ सब्रदार ओर आशान्वित लोगोँ ने सोचा कि सरकार अभी अचानक से अच्छे दिनों वाली नीतियॉं घोषित थोड़े ही न करेगी। बजट सत्र आने वाला है उसमें अच्छे दिनों के लिए आवश्यक सामग्री प्रचुर मात्रा में होगी। इसकी उम्मीद में रेल और आम बजट की बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। रेल बजट बड़ा ही संतुलित बजट रहा। इसमें जनता की जेब और रेलवे की हालत का ध्यान ठीक से ऱखा गया था। लेकिन एक बात मेरे तुच्छ दिमाग मेँ समझ नहीं आई कि 60000 करोड़ रुपये की बुलेट ट्रेन का हम क्या करेँगे ? कुछ बुद्धिजीविओं ने कहा कि इतने में तो 800 राजधानी एक्सप्रेस चलाई जा सकती है जिसकी स्पीड वर्तमान में चल रहे एक्सप्रेस ट्रेनों से ज्यादा अच्छी होती है। लेकिन भाई अच्छे दिन चाहिए तो बुलेट ट्रेन तो होनी ही चाहिये।
फिर आया आम बजट। लोगों की उम्मीदों की सीमा नहीं थी। अच्छे दिन की नींव उसी दिन ही तो रखी जानी थी। ये भी कुल मिलाकर ठीक ही रहा। लेकिन इसमें भी अच्छे दिन की छाप नहीं दिखी। विरोधियों को तो बिलकुल भी नहीं दिखी। लोग कहने लगे कि अगर ऐसे ही अच्छे दिन लाने थे तो कांग्रेस की सरकार क्या बुरी थी। अब सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति स्थापित करने के लिए बजट में 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। बताते हैं कि पूरा खर्च 2500 करोड़ रुपये का है। अब हमारे देश में लोग गरीबी से बेहाल हैं। बहुत से लोगों को दो शाम का भोजन बडी मुश्किल से मिलता है। पैसे न होने के कारण इलाज के अभाव में लाखों लोग मर जाते हैं।
ऐसे में सोचना होगा कि क्या हमारा देश 60000 करोड़ रुपये की बुलेट ट्रेन और 200 करोड़ रुपये की मूर्ति के लायक हैं ? होना तो ये चाहिए की ये रुपये विकास के कार्यो में लगाये जाते। मैं तो कहता हूँ कि इन पैसे से मूर्त्ति के बदले सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर स्कूल, कालेज, अस्पताल खुलवा दीजिये, लौह पुरुष के सम्मान में कोई कमी नहीं आएगी।
लेकिन अच्छे दिन की परिभाषा तो भाजपा खुद ही गढ़ेगी और उसी के अनुसार हमें अच्छे दिन प्रदान करेगी।
आखिर इतना हक़ तो हमने इनको पिछले चुनाव में दे ही दिया है।
0 comments:
Post a Comment