26 मई 2014
नीतीश जी ने बिहार की बागडोर 2005 में संभाली थी। तब बिहार में हर तरह की समस्या थी। भ्रष्टाचार और बेरोजगारी चरम पर थी। शिक्षा का स्तर बहुत ही गिर गया था। लोग पढाई और नौकरी के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे थे। अपहरण उद्योग जोरों पर था। लोग दिन ढलने के बाद घर से नहीं निकलते थे और जो घर नहीं पहुंच पाये थे उनके घर के लोग सहमे से रहते थे इस अंदेशा में कि पता नहीं क्या हो गया हो। सड़कों में गड्ढे थे या गड्ढो में सड़क, इसका पता लगाना मुश्किल था। सरकारी कर्मचारियों का वेतन 6 -6 महीने विलम्ब से मिलता था। कुल मिलकर जनता त्राहि त्राहि कर रही थी।
नितीश जी ने बड़े ही लगन और मेहनत से काम करना शुरू किया और सिर्फ 5 साल में ही बिहार की काया पलट कर दी। हर तरफ खुशहाली होने लगी। विकास के कार्य होने लगे। जनता ने उनको इसका इनाम भी दिया 2010 के चुनाव में। सत्तारूढ़ गठबंधन को अभूतपूर्व सफलता मिली। विपक्ष की नेता भी चुनाव हार गयी। विपक्ष लगभग समाप्त ही हो गया। नीतीश जी ने लगन और निष्ठा से कार्य करना चालू रखा। लेकिन पता नहीं बिहार और बिहारवासियों की खुशहाली को किसकी नजर लग गयी। सत्तारूढ़ गठबंधन टूट गया और भाजपा सत्ता से अलग हो गयी। लेकिन विकास की गति पर कोई फर्क नहीं पड़ा। नितीश जी उसी तेजी के साथ विकास कार्य में लीन रहे।
जब आम चुनाव हुए तो मुझे ही नहीं विकास की राजनीती के हर एक पक्षधर को यही लगता था की नितीश जी की पार्टी को 40 नहीं तो कम से कम 35 सीटें तो जरूर ही मिलेंगी। आखिर बिहारवासियों को नयी जिंदगी जो मिली थी उनके शासन काल में। जितनी सेवा उन्होंने बिहार की की थी, जनता ने उसका इनाम तो देना ही था। लेकिन परिणाम आया तो कुल मिलाकर 2 सीटें मिली उनकी पार्टी को। हमलोग तो हक्का बक्का रह गए। ये क्या हुआ। आखिर क्यों इस तरह का जनादेश दिया बिहार वालों ने ? ये क्या किया, बिहारवालों ने ?
नीतीश जी ने बिहार और बिहारवासियों के लिए इतना कुछ किया फिर भी जनता क्यों नाराज है उनसे ? अगर उनको वोट नहीं मिला इसका मतलब तो यही है कि जनता नाराज है उनसे या फिर उनके कार्यों से। लेकिन काम तो उनकी सरकार ने खूब किया है। फिर ? क्या जनता विकास की राजनीति को पसंद नहीं करने लगी है। अभी भी जाति आधारित वोटिंग होती है क्या, ऐसा भी कुछ लोगो का कहना था।
या फिर लोग विधानसभा चुनाव और आम चुनाव में फर्क करके अलग तरह की वोटिंग करने लगे हैं। लोग समझने लगे हैं कि जो पार्टी केंद्र में अच्छा नेतृत्व दे सकती है उसको आम चुनाव में वोट करें और विधासभा चुनाव में उसी पार्टी को वोट करें जो हमारी स्थानीय समस्याओ का अच्छे तरीके से हल कर सके। अगर ऐसा है तो इससे मतदाता की जागरूकता का पता चलता है। हमारे देश के मतदाता इतने परिपक्व हो चुके हैं कि उनको लोकसभा और विधानसभा स्तर के चुनाव का फर्क मालूम है।
मैंने चुनाव पूर्व भी बिहार के कुछ लोगों से बात की थी। मैंने पुछा नितीश जी कैसा काम कर रहे हैं, वो बोले बहुत अच्छा। हमने कहा फिर तो उनको खूब वोट मिलेगा इस बार , तो बोले कि वोट तो मोदी जी को ही देंगे। नितीश जी को वोट देने से तो प्रधानमंत्री थोड़े ही न बन जाएंगे। 40 सीट से इनको क्या मिलेगा। मोदी जी को वोट देंगे तो वो प्रधानमंत्री बनेंगे। लेकिन अगले विधानसभा चुनाव में फिर से नितीश जी को ही वोट देंगे।
उनका जवाब सुनकर मैं खुद ही सोच में पड़ गया। क्या ये वही बिहार है जिसके बारे में चुनाव और राजनीती के पंडित लोग कहते थे कि यहाँ तो सिर्फ जाति को ही वोट देते हैं।
मैंने चुनाव पूर्व भी बिहार के कुछ लोगों से बात की थी। मैंने पुछा नितीश जी कैसा काम कर रहे हैं, वो बोले बहुत अच्छा। हमने कहा फिर तो उनको खूब वोट मिलेगा इस बार , तो बोले कि वोट तो मोदी जी को ही देंगे। नितीश जी को वोट देने से तो प्रधानमंत्री थोड़े ही न बन जाएंगे। 40 सीट से इनको क्या मिलेगा। मोदी जी को वोट देंगे तो वो प्रधानमंत्री बनेंगे। लेकिन अगले विधानसभा चुनाव में फिर से नितीश जी को ही वोट देंगे।
उनका जवाब सुनकर मैं खुद ही सोच में पड़ गया। क्या ये वही बिहार है जिसके बारे में चुनाव और राजनीती के पंडित लोग कहते थे कि यहाँ तो सिर्फ जाति को ही वोट देते हैं।
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