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आखिर इनकी जुबान कब सुधरेगी ?

23 अप्रैल 2014

जी हाँ, नेताओं की ही बात कर  हूँ। आजकल चुनाव का मौसम है , एक दिन में ३ से ४ तक चुनावी सभा कर रहे हैं नेता लोग। अपनी सभा में जम कर अमर्यादित शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं कुछ नेता। एक नेता ने दूसरे की बोटी बोटी काट कर रखे देने की बात कही तो दूसरे ने कहा की अगर हमारी बहन को वोट नहीं दोगे तो तुम्हारे इलाके की पानी बंद करवा देंगे। अपने प्रतिद्वंदी नेता पर घिनौना आरोप लगाने से भी नहीं चूकते। हमारे कुछ नेता को तो ऐसे शब्दों का प्रयोग करने में महारत हासिल है। अभी पिछले दिनों श्री बेनी प्रसाद जी ने कहा की मोदी जी बचपन में किसी की हत्या करके भाग गए थे। अब ऐसी बातों को चुनावी सभा में कहने से क्या फायदा ? क्या यह सुनकर मोदीजी को वोट देने वाले उनको वोट नहीं देंगे ?


थोड़े दिनों पहले की ही बात है बिहार के श्री गिरिराज सिंह जी ने कहा की जो मोदी को वोट नहीं देगा उसको पाकिस्तान खदेड़ देंगे। मोदी का विरोध करने वालों के लिए हिन्दुस्तान में कोई जगह नहीं है। चुनाव के समय में धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले बयान देने से भी नहीं चूकते नेता लोग। जब से चुनावी मौसम शुरू हुआ है नए नए आपत्तिजनक शब्द गढ़े जा रहे हैं और सुनने को मिल रहे हैं। किसी ने कहा की फलां नेता को तो हम भागलपुर की जमीं में ही गाड़ देंगे। अभी आम आदमीं पार्टी की नेता शाज़िया इल्मी ने कहा कि मुसलमानो को सांप्रदायिक होना होगा

दरअसल कुछ नेताओं में सत्ता की भूख इस कदर हावी हो गयी है कि इनको उचित अनुचित का कुछ भेद नहीं दिख रहा है। किसी प्रकार से ये चुनाव जितना चाहते हैं चाहे जैसे भी हो। नैतिकता को ताक पे रखकर बयानबाजी कर रहे हैं ये लोग। राजनीति में नैतिकता दिन प्रति दिन गिरती जा रही है। आपराधिक पृष्ठभूमि के कुछ लोग राजनीती में आ गए हैं। ऐसे बदजुबान लोग अगर सांसद बनेंगे तो संसद का तो भगवान ही मालिक है। 

हमें चाहिए कि ऐसे लोगों को बिलकुल वोट न दें जो नैतिकता का पालन नहीं करते और बदजुबानी करते हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को भी वोट न दिया जाए। कुछ पुराने सांसद हैं जिनका संसद में हंगामा खड़ा करने , वेल में जाकर शोर मचाने और कभी कभी तो मारपीट करें का भी इतिहास रहा है उनको वोट न दिया जाए। वे संसद में जाकर फिर से वही काम करेंगे। बहुत से सांसद चुनाव तो जीत जाते हैं लेकिन संसद में उनकी उपस्थिति न के बराबर होती है, ऐसे लोगों को भी संसद से बाहर ही रखा जाय। जनहित के मुद्दों पर संसद में बहस होते रहते हैं लेकिन कई ऐसे सांसद हैं जिन्होंने कभी भी संसद की बहस में हिस्सा नहीं लिया।  उनके लिए भी संसद का रास्ता बंद होना चाहिए। 

कुल मिलकर ऐसे लोगों को वोट दें जो हर तरह से ठीक हो। दूध का धुल तो कोई नहीं होता आज के जमाने में लेकिन जिनमें जनसेवा की भावना कूट कूट कर भरी हो उसको ही वोट दिया जाए।



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