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बलात्कार से निपटने के लिए वेश्यालय तो होना ही चाहिए।


21 सितम्बर, 2013

आजकल बलात्कार की घटनाएं आम बात सी हो गयी है। हमारी राजधानी दिल्ली में तो हर दुसरे दिन किसी न किसी लड़की से छेड़ छाड़ , बलात्कार की खबर आती रहती है। सरकार भी अपनी तरफ से कोशिश करती ही रहती है कि ऐसी घटनाएं न हो। कड़े से कड़ा कानून बना दिए गए। पिछले दिनों ४ आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई।  सोचा गया था कि कड़ी सजा से लोग इस तरह की नीचता करने से डरेंगे लेकिन नीच मानसिकता वाले लोगों को इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है।

हर तरह के उपाय आजमा लिए गए, लेकिन कोई फायदा नहीं। यौन इच्छा कितनी प्रबल हो गयी है लोगों की कि उम्र, रिश्ता, जगह कुछ नहीं देखते, विचारते। बस मौका मिला और हो गयी नीच हरकतें शुरू। विदेशियों से भी छेड़ छाड़ कर लेते हैं, उनका भी बलात्कार कर देते हैं। कोई शर्म लिहाज, ऊँच नीच का विचार नहीं। बस अपनी हवस मिटानी है , चाहे उसका परिणाम कुछ भी हो। किसी की पूरी जिंदगी बर्बाद हो जाए, कोई मर जाए लेकिन इनको क्या?  आखिर इस तरह की जिद और जज्बा अच्छे कार्यों में क्यों नहीं लगाते हैं ये लोग ?

पहले कहते थे कि इस तरह के कर्मों में लिप्त लोगों में ज्यादातर अनपढ़, असभ्य लोग होते हैं। लेकिन अब तो इस तरह के वर्गीकरण की सीमा से भी दूर हो गए हैं ये लोग। क्या अनपढ़, क्या गरीब, क्या असभ्य ? हर जाति , धर्म और समाज में इस तरह का रोग फ़ैल चूका है। कई घटनाओं में तो भाई बहन से, पिता पुत्री से दुष्कर्म करते पाए गए हैं। आखिर किस पर भरोसा करे कोई लड़की या स्त्री? रिश्तों की मर्यादाएं भी तार तार हो चुकी हैं।

अब वक्त आ गया है कि इस तरह के अति यौन इच्छा या फिर यौन अन्धता के शिकार लोगों के लिए सरकार वेश्यावृति को वैधानिक करे। वेश्यालय खोले जायें जिससे नीच लोगों की जरूरतें पूरी हो सके और इनको दूसरों या अपनी माँ - बहनों एवं बहू - बेटियों के साथ नीच हरकत करने की जरूरत न पड़े। कहने और सुनने में बड़ा अजीब लगता है लेकिन क्या किया जा सकता है? कम से कम लडकियाँ बेफिक्र और निडर होकर घर के बाहर निकल तो सकेंगी।

ऐसा भी नहीं है कि अभी वेश्यावृति नहीं हो रही है। अभी सब कुछ चोरी छुपे और अवैध रूप में हो रहा है। आए दिन छापेमारी में कालगर्ल रैकेट का भंडाफोड़ होता रहता है। कैद और जुरमाना भी होता है। जब यही पेश वैध हो जाएगा तो सरकार को भी राजस्व की प्राप्ति होगी। कुछ लोग कह सकते हैं कि इससे हमारी संस्कृति का नाश हो जाएगा। परन्तु, इन बलात्कारियों ने हमारी संसकृति की मर्यादा हो कौन सा उन्नत करके रखा हुआ है ?

आदि काल में भी हमारे यहाँ नगर वधू का चलन रहा है। कहा जाता था कि ये नगरवधू ही है जिनकी वजह से हमारी बहु बेटियों की इज्जत महफूज़ है। लेकिन यह मुद्दा इतना संवेदनशील है कि अगर कोई सरकार इस दिशा में प्रयत्न करे भी तो विपक्षी दल बहुत बड़ा हंगामा खड़ा करने से बाज नहीं आयेंगे। हो सकता है कि प्रयत्नशील सरकार भूतपूर्व सरकार बन जाए।

आखिर शेर के गले में पट्टा डाले कौन ?
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About मृत्युंजय श्रीवास्तव

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