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जंगलराज और सुशासन का अनोखा संगम

26 जुलाई 2014

अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब सुशासन बाबू, अरे वही अपने बिहार के नितीश बाबू, लालू जी के शासन को जंगलराज कहकर कोसते नहीं थकते थे। जब तक  वो भाजपा  के साथ रहे, यानि 17 साल तक, शायद ही कोई दिन  रहा हो जब उन्होंने लालू जी की राजनीती की बुराई न की हो। उनकी राजनीती के 17 साल लालू विरोध पर ही टिका हुआ था। जनता को तो फिर भी लालू से के कुछ कामों में अच्छाई दिख भी जाती थी लेकिन नितीश जी को कभी भी लालू जी का काम पसंद नहीं आया। जब बिहार का बँटवारा हुआ तो लालू जी ने भारी भरकम मुआवजा की माँग की केन्द्र सरकार से, उस समय केन्द्र में एनडीए की सरकार थी और नितीश जी मंत्री थे। चाहते तो बिहार को बहुत कुछ दिलवा सकते थे, लेकिन उनकी नजर में तो बिहार में जंगल राज था। जब नितीश जी मुख्यमंत्री बने तो लालू जी केंद्र में मंत्री थे। वह भी बिहार को खूब पैसे दिलवा सकते थे लेकिन क्यों दिलाते , बिहार में कुशासन जो था।

लालू जी का विरोध कर कर के 2000 में 7-8 दिनों के लिए पहली बार मुख्यमंत्री बने, ये अलग बात है कि इनकी सरकार बहुमत हासिल नहीं कर पाई। उसके बाद भी इनकी राजनीती का केन्द्र राजद का विरोध ही रहा। अंततः 2005 में भाजपा के साथ इनकी बहुमत वाली सरकार बनी। उसके बाद 2010 के चुनाव में भी इनके गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला और लालू जी की पार्टी  विधायकों की संख्या नगण्य सी ही हो गयी। खुद राबड़ी देवी भी चुनाव हार गयी। ऐसा नहीं था की सिर्फ नितीश जी की विरोध करते थे। लालू जी ने भी कभी नितीश जी के शासनकाल की तारीफ़ नहीं की। जब तक नितीश जी मुख्यमंत्री रहे , लालू जी को उनके शासन  में बुराई ही दिखती रही। दोनों उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की तरह थे। मतलब दोनों ही एक दूसरे के कट्टर राजनितिक दुश्मन, व्यक्तिगत रिश्ते चाहे जैसे भी रहे हों। एक दुसरे का विरोध करके दोनों ने लोकसभा 2014 का चुनाव लड़ा।

लेकिन ज्योंहि चुनाव के नतीजे आये , दोनों ही की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी। लालूजी को 4 और नितीश जी को 2 सीटें मिली, और भाजपा को प्रचण्ड बहुमत । अचानक से दोनों के ही सुर ताल बदल गए। लगे एक दूसरे  की जी भर कर तारीफ करने। इतने साल विरोध करने  बावजूद भी नितीश जी ने जरा सा भी संकोच नहीं किया सरकार बचाने के लिए बड़े भाई से समर्थन माँगने में और बड़े भाई का बड़ा दिल देखिये, भूल गए सारे गीले शिकवे। भूल गए छोटे भाई के कटु बोल और अपनी कही कड़वी बातें। भरत मिलाप हो गया दोनों भाइयों का। बिलकुल भी देर नहीं की समर्थन देने में। कुशासन और जंगलराज की सारी बातें गुम हो गयी। कह रहे हैं कि बिहार को साम्प्रदायिकता की आग से बचाना है। अरे, आग से क्या बचाना है, जनता ने तो खुद ही सांप्रदायिक पार्टी को वोट दिया है।

थोड़े ही दिनों में उपचुनाव होने वाले हैं बिहार में , पता चल जाएगा कि जनता इन दोनों के मेल से कितना खुश है। लेकिन इतना तो साबित हो गया कि राजनीति  में आज एक दूसरे को कोसने वाले कब दोस्त बन जाएँ, कह नहीं सकते।
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