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ये भाजपा का दोगलापन नहीं, तो क्या है ?




29 दिसम्बर, 2013 

दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को अच्छा खासा जन समर्थन मिला। किसी नई नवेली पार्टी के लिए इतना काफी है कि वह पहले ही प्रयास में सरकार बना ले। लेकिन हमारी स्व-घोषित सबसे अनुशासित पार्टी भाजपा को क्या हो गया है। पहले कहा कि हम सरकार बनाएंगे। उनके पास पर्याप्त संख्याबल नहीं था तो उप-राज्यपाल महोदय को इंकार भी कर आये। 

फिर कहा कि आम आदमी पार्टी सरकार बनाती है तो हम रचनात्मक सहयोग करेंगे। जब कांग्रेस ने कहा कि हम केजरीवाल जी की पार्टी को देश हित में बिना शर्त समर्थन देंगे, तबसे इनके सुर बदल गए। कहने लगे कि जब कांग्रेस समर्थन दे रही है तो सरकार क्यों नहीं बनाते ? प्रचारित करने लगे जैसे  कि केजरीवाल ने अनोखे और असम्भव वादे कर लिए हैं जो इस धरती पर पुरे नहीं किये जा सकते। 

भाजपा के सारे नेता एक सुर में हमले करने लगे कि जैसे आम आदमीं पार्टी सरकार बनाकर कोई बड़ा गुनाह कर रही है और खुद ने जैसे विपक्ष में बैठने के लिए ही चुनाव लड़ा था। 

जब जनता की राय ली जाने लगी तो इसको नौटंकी और ढकोसला बताया इन लोगों ने। बस ये किसी तरह से चाहते थे कि आम आदमीं पार्टी सरकार बना ले। लेकिन ज्योंहि घोषणा हुई कि सरकार बनाई जायेगी , तब कहने लगे कि हम तो पहले से ही कह रहे थे कि "आप" कांग्रेस की "बी" टीम है। मतलब की चित भी मेरी और पट भी मेरी। 

क्या वाजपेयी युग के समाप्त होने के साथ ही भाजपा ने नैतिकता को भी तिलांजलि दे दी है ? क्या यह वही पार्टी है जिसके नेता वाजपेयी जी ने राजनैतिक मतभेद होने के बावजूद पाकिस्तान को मुहतोड़ जवाब देने के कारण इंदिरा जी को दुर्गा का अवतार कहा था ? क्या भाजपा एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और सकारात्मक विपक्ष कि भूमिका निभाना भूल गयी है। 

जनता भी बेवक़ूफ़ नहीं है। दिन प्रतिदिन भारतीयो में शिक्षा का स्तर बढ़ ही रहा है। जनता अच्छी तरह समझ रही है कि ये भाजपा का दोगलापन नहीं, तो क्या है ?
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