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इस चक्रव्यूह से कैसे निकलोगे केजरीवाल ?




9 दिसम्बर, 2013

दिल्ली के लोगों ने अपना फैसला सुना दिया है। जनता ने तुमको शक्ति तो दी है लेकिन सत्ता नहीं दी। तुम भी तो सेवक ही बनना चाहते थे , शासक बनने की इच्छा तो कभी तुम्हारी भी नहीं रही। जनता ने ऐसे चक्रव्यूह की रचना कर दी है कि तुम्हारी जरा सी चूक तुम्हारी सारी मान और प्रतिष्टा को मिटटी में मिला सकती है   तो अब क्या करोगे ? इस चक्रव्यूह से कैसे निकलोगे केजरीवाल ? अभिमन्यु कि तरह वीरगति को प्राप्त होगे या फिर अर्जुन की तरह इसको भेद कर जनता की नजर में अपना कद और भी ऊँचा करोगे ?

दिल्ली के विधानसभा चुनाव के परिणाम कुछ इस तरह से है।
भाजपा                   32
आम आदमी पार्टी   28
कांग्रेस                     8
अन्य                       2 

यह कटु सत्य है कि सामने लक्ष्य है सिर्फ दो - चार कदम दी दूरी पर लेकिन पैर और हाथ कट गए हैं। यही हाल है आज दिल्ली की राजनीती में। सत्ता से थोड़ी ही दूरी पर हैं भाजपा और आम आदमी पार्टी। मजबूरी ऐसी कि दोनों में से कोई भी एक दुसरे का समर्थन न तो ले सकता है और न ही दे सकता है। कांग्रेस के समर्थन से भाजपा की सरकार तो बन सकती है लेकिन ये दोनों तो रेल की पटरियों के सामान हैं, कभी मिल ही नहीं सकते। जिस दिन मिलेंगे ऐसी रेल दुर्घटना होगी जिसके बारे में सोचकर ही रूह काँप जाती है। मतलब यह विकल्प भी गया। निर्दलियों के समर्थन से सरकार बन नहीं सकती है।

कुल मिलाकर "आप" से ही उम्मीद है। लेकिन उम्मीद भी कैसी कि इनके कुछ लोग टूट कर भाजपा को समर्थन दे दें। कुछ का मतलब है 20 विधायक जो कि मुश्किल के साथ साथ नामुमकिन भी है। "आप" की सरकार बन सकती है अगर इनको कांग्रेस का समर्थन मिल जाए। लेकिन जिस तरह से ये कांग्रेस विरोध के नाम पर इतनी सीटें लेकर आये हैं , ये नहीं चाहेंगे कि जनता इनसे भी उतनी ही नफरत करने लगे जितनी कांग्रेस से करती है। वैसे ही पार्टी के गठन के समय से ही यह दुष्प्रचार चलाया जा रहा है कि कांग्रेस की "बी" टीम है।

लेकिन इस समय दुबारा चुनाव में भी जाना बड़ा ही मुश्किल है। जनता की नजर में जो कोई भी पार्टी दुबारा चुनाव का जिम्मेदार होगी , उसका तो गर्त में जाना तय है। ले देकर एक ही विकल्प बचता है कि विश्वास मत दे दौरान अनुपस्थित रहकर "आप" भाजपा की सरकार बनवा दे और एक अच्छे विपक्ष की तरह जनहित के मुद्दे पर सत्तापक्ष को भरपूर समर्थन दे। लेकिन जो भी मुद्दे जनविरोधी दिखे उस पर जम कर विरोध करे। भारतीय राजनीती के इतिहास में बड़ा ही अनोखा समय है जब सत्तापक्ष की शक्ति विपक्ष में ही निहित है। इस मौके का जनहित में फायदा उठाना चाहिए।

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