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आखिर कब अक्ल आयेगी तुमको?


26 सितम्बर, 2013

आखिर कब अक्ल आयेगी तुमको। नेता जो समझा देते हैं वही राग अलापने लगते हो. अपना दिमाग क्यों नहीं लगाते ? कल तक जिनके साथ हंसते गाते थे, जो तुम्हारे दुख सुख में काम आता था और तुम उसके आते थे, आज बाहर वालों के बहकावे में आकर उसको जानी दुश्मन समझ बैठे।  खून खराबे पर उतर आते हो।  क्या मंदिर क्या मस्जिद ? आपसी प्रेम भाव सबसे बड़ी चीज है। हर धर्म यही सिखाता है लेकिन तुम बहकावे में आकर अपने धर्म की बात भी भूल जाते हो। ऐसे तो बड़े धार्मिक बनते हो, कौन से धर्म में लिखा है किसी का कत्ल करना और किसी को पीड़ा पंहुचाना ?

खुद तो जैसे दूध के धुले हो ना,सारी बुराई सिर्फ दूसरों में ही नज़र आती है तुमको। दूसरों को सुधारना चाहते हो, खुद कितना सुधरे हुये हो ? अगर सड़क पर लाल बत्ती है, तो थोड़ी देर इंतज़ार नहीं कर सकते इसके हरी होने का? आखिर इतनी जल्दी किसलिये ? अब न तो तुम्हारा कोई रिश्तेदार अस्पताल में भर्ती है, जिसके लिये तुम जीवन रक्षक दवा ले जा रहे हो और एक एक पल उसकी जिंदगी के लिये कीमती है। फिर ये भागम भाग क्यों? लालबत्ती पर गाडियाँ खड़ी रहती हैं, और तुम अपनी बाइक , साइकिल को फूटपाथ पर चढ़ा देते हो आगे निकलने के लिये। इतनी भी तमीज नहीं कि फूटपाथ पैदल चलने वालों के लिये है। क्यों खतरे में डालते हो अपनी और दूसरों की ज़िंदगी ?

दूसरों के भ्रष्टाचार पर खूब टीका टिप्पणी करते हो, उसको भ्रष्ट बनाया किसने ? गैर कानूनी काम करते हो और उसको रोकने कोई आता है तो उसको रिश्वत देकर अपना काम बना लेते हो। फिर तो उसको रिश्वत की आदत लग जाती है और वो तुम्हारे कानून सम्मत कार्य में भी रिश्वत मांगने लगता है, और न देने पर बे-वजह अडंगा लगा देता है। आखिर इतना लोभ लालच किस लिये, जब सब कुछ यहीं छोड़कर जाना है ?

चरित्र कितना गिर गया है तुम्हारा, वासना में अन्धे हो गये हो। कुछ नहीं दिखता माँ, बहन, बेटी, बस दिखता है तो नारी शरीर. इस बलात्कार की पीड़ा कभी महसूस करके देखो तब पता चले। तुम तो बस अपना क्षणिक सुख भोग कर चल देते हो, उसके बाद नारी की शारीरिक और मानसिक पीड़ा होती है वह कितनी भयावह होती है, तुम क्या जानो। और जब तुमको ऐसे अपराध की सजा दी जा रही होती है तो अपने की कितना मासूम साबित करने की कोशिश करते हो। तब तुम्हे पीड़ा का अहसास होता है, जब तुम अपने सामने आती हुई मौत को पल पल देखते हो ? यह सब उस समय क्यों नही सोचते जब दूसरों को दर्द दे रहे होते हो ?

क्यों नेताओं की रैली में जाते हो. ट्रेनो , बसों में धक्के खाकर, वहां जाकर, घंटो धूप में बैठकर तुमको क्या मिलता है ? इस समय का सदुपयोग क्यों नही करते ? अगर वहां जाने के क्रम में तुमको कुछ हो गया, तो तुम्हारे परिवार वालों की मदद कौन करेगा, ये कभी सोचा है तुमने ? तुम बीमार पड गये तो तुम्हारा इलाज रैली वाले करवायेंगे ? बे-वजह, बिना स्वार्थ के वहां जाने में तुमको किस आनंद की अनुभूति होती है ? इतना समय अपने काम में क्यों नहीं लगाते। 

जब भी सरकार से नाराजगी होती है, तुम सरकारी सामानों, भवनों, रेल गाड़ियों, बसों को तोड़ने फोड़ने लगते हो। अरे, कभी सोचा है कि इसमें नुकसान किसका है ? तुम्हारे पैसे इसमें लगे हैं। तुम अपनी संपत्ति को नुकसान पहुँचा रहे हो, दूसरे का कुछ नही जा रहा है ? कभी कभी तो रेल की पटरी पर बैठ जाते हो। क्या सोचते हो, तुमको देखकर इतनी स्पीड में आती गाड़ी रुक जायेगी, अचानक से ? तुमको अपनी जान का डर क्यों नही लगता ? आखिर क्या चीज है जिसको हासिल करने के लिये अपने जान की बाजी लगाते हो ?

 ये मानव जीवन बड़ी कठिनाई से मिलता है, इसका सदुपयोग करो। आखिर कब अक्ल आयेगी तुमको ?
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About मृत्युंजय श्रीवास्तव

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