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मजबूर बाप - उद्दंड औलाद



13 जून, 2013 

घर की आर्थिक स्थिति बिल्कुल चरमरा गयी है, बूढ़े और लाचार बाप पर परिवार को चलाने की जिम्मेदारी है. दो पैसे की आमदनी नहीं है. बाप जैसे तैसे करके घर को चलाने की कोशिश करता है, ताकि परिवार की इज्जत बची रहे. लेकिन उसके कुछ बच्चे पड़ोसियों के बहकावे मे आकर बाप पर बेईमानी का आरोप लगाते है और जब भी मौका मिलता है उसको अपमानित करते हैं. पूरे गांव के लोग बाप की तारीफ किये नहीं थकते लेकिन अपनी निकम्मी औलाद उसको दो कौड़ी का नहीं समझती.
बाप बार बार गांव के महाजन से सहायता के लिये गुहार लगाता है ताकि वह अपने घर को बेहतर तरीके से चला सके लेकिन पड़ोसी के बहकावे मे आये उसके बच्चे इसको भी उसकी नौटंकी समझते हैं.
ठीक यही हालत हमारे नीतीश कुमार जी की है. बिहार मे 15 साल से श्रीमान लालू जी और उनकी धरम पत्नी द्वारा शासन किया जा रहा था. लेकिन प्रदेश की हालत निरंतर खराब हो रही थी. सड़कों मे गड्ढे बन गये थे, लोगो को रोजगार नही मिल रहा था. अनपढ, मजदूर तो क्या पढ़े लिखे लोग भी नौकरी की तलाश मे पलायन कर रहे थे. महाविद्यालयों और विश्विद्यालयों में परीक्षा 3-3 साल की देरी से आयोजित की जाती थी.

कार्यालयों मे भ्रस्टाचार अपनी जड़ें इतनी मजबूती से जमा चुका था कि बाबू एवम किरानी अक्सर चाय और पान की दुकान पर ही पूरा दिन गुजारते मिलते थे (दफ्तर मे रिश्वत लेना थोड़ा रिस्की जो होता था).

सिर्फ एक ही उद्योग था जो भली भांति फल फूल रहा था, अपहरण उद्योग. मतलब हर तरफ से लूट खसोट मची थी और जनता त्राहि त्राहि कर रही थी.  किसको नही लगता था कि बिहार और बिहारवासियों के दिन कभी सुधरेंगे.
लेकिन सरकार बदलते ही प्रदेश मे विकास के कार्य होने लगे. सडकें बनने लगी, लोगो को रोजगार भी मिलने लगा, अनुबंध पर ही सही, लोगो को नौकरियाँ तो मिलने लगी हैं. सबसे बड़ी बात, बिहारियों का प्रदेश से पलायन रुक गया है. दूसरे प्रदेश मे जाकर कार्य करने गये मजदूर वापस आकर बिहार मे ही बस गये हैं जिससे उन प्रदेशों मे मजदूरों की किल्लत हो गयी है.

परंतु आज जब नीतीश जी प्रदेश के कायाकल्प मे जी जान से लगे हुये हैं तो कुछ निकम्मो को प्रगति की इस बयार से सर्दी जुकाम हो रही है. आखिर ऐसे लोग, प्रगति एवम विकास के प्रतीक नीतीश कुमार जी का विरोध करके, उनको काले झंडे दिखाकर किसका भला कर रहे हैं? इनमे से अधिकतर सरकारी कर्मचारी हैं जिनकी नौकरी अनुबंध पर आधारित हैं. सरकारी कर्मचारी द्वारा ड्यूटी से अनुपस्थित रह कर प्रदेश के मुख्यमंत्री की जनसभा मे उनको काले झंडा दिखाना और विरोध प्रदर्शन करना कहाँ तक उचित है.

बुजुर्गो ने सही कहा है कि घी सबको हजम नही होती...........
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