11 अगस्त, 2013
बिहार के छपरा जिले में विषाक्त मिड डे मील खाने से 23 बच्चों की मौत के बाद मिड डे मील में गड़बड़ी और चापाकल के पानी को दूषित करने की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। एक स्कूल के चापाकल में दो लोग बाइक से उतरे और जहर डाल कर भाग गए। शुक्र है कि एक बच्चे ने उनको यह सब करते देख लिया और स्कूल के रसोइये को खबर कर दी, वरना पता नहीं कितनी जानें और जाती। दिल्ली के अशोक विहार इलाके के एक स्कूल में मिड डे मील खाने से बच्चे बीमार हो गए। दिल्ली के ही रोहिणी इलाके के एक स्कूल में मिड डे मील खाने से प्रधानाध्यापिका और शिक्षक बीमार हो गए। बिहार के ही सीतामढ़ी जिले में एक स्कूल के चापाकल के विषाक्त पानी को पीकर ५० से ज्यादा बच्चे बीमार हो गए। अब तो देश के हर हिस्से से हर रोज किसी न किसी विद्यालय में इस तरह के घटनाओं की खबर आने लगी है। लोग अपने बच्चे को मिड डे मिल खिलाने से इनकार करने लगे हैं।
जब छपरा की घटना हुयी थी तब यह अपने तरह ही पहली घटना थी। लोग सन्न रह गए थे , कुछ ने रसोइये की लापरवाही की बात कही तो कुछ लोगों का विचार था कि राशन की दुकान से आया सामान ही दूषित था। विपक्षी दलों को सरकार पर हमला बोलने का मौका मिल गया, मानों उनके शासन काल में ऐसा कुछ हुआ ही न हो। फिर सरकार को भी जवाब में विपक्ष पर हमला बोलना पड़ा कि ये विपक्ष की साजिश है सरकार को बदनाम करने की। इन आरोपों - प्रत्यारोपों के बीच में बच्चे बीमार होते रहे।
लेकिन सोचा जाए तो किसी साजिश की बू तो आती ही है। पहली घटना हुई, इसको एक इत्तिफ़ाक़ माना जा सकता है , फिर दूसरी , तीसरी, क्रम टूटने का नाम ही नहीं ले रहा। आखिर जो लोग इसके पीछे हैं, क्या उनकी आत्मा इस स्तर तक गिर चुकी है ? इन मासूम बच्चों की जान लेकर उनको क्या हासिल हो जाएगा ?
अब सरकार ने इसका उपाय ढूँढा है कि बच्चों को खाना खिलाने से पहले स्कूल के प्रधानाध्यापक, १-२ शिक्षक और इससे जुड़े २-३ लोग भोजन करें। क्या सरकार यह समझती है कि ये लोग पहले भोजन करेंगे तो खाने की गुणवत्ता सुधर जायेगी ? होना तो यह चाहिए कि रसोइया की ही जिम्मेदारी हो खाने की गुणवत्ता की। अब बेचारे शिक्षक महोदय बच्चों को पढ़ाएं या फिर खाना बनाने और सुरक्षित रूप से बच्चों को खिलाने का काम संभालें ? लेकिन सरकारी फरमान है मानना ही पड़ेगा गुरूजी को।
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