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पाँचवी फेल गुरूजी




29 नवम्बर, 2013

बिहार में जो नए शिक्षक बहाल हो रहे हैं, जिनको नियोजित शिक्षक कहा जाता है, उनमें से अधिकांश का यही हाल है। पिछले महीने बिहार में स्कूल टीचरों को परखने की लिए एक टेस्ट रखा गया।  इसमें 43,337 टीचरों ने टेस्ट दिया जिसमें सिर्फ 32, 833 पास हो पाए। यानी करीब 24 पर्सेंट टीचर इस एलिजिबिलिटी टेस्ट में फेल हो गए।
अब विपक्षियों और विरोधियों को नीतीश सरकार पर निशाना साधने का और नीतीश जी को पानी पी पीकर कोसने का एक और मौका मिल गया है। अब विरोधियों की नजर अच्छे कार्यों पर थोड़े ही न पड़ेगी ? उनको गुलाब नहीं दिखेगा, सिर्फ काँटे ही तो दिखेंगे। 

हुआ यों कि पिछली सरकार की हर नियुक्ति में जमकर भ्रष्टाचार और घूसखोरी के आरोप लगते थे । प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं होती थी।  पहले लिखित परीक्षा ली जाती  थी उसके मूल्यांकन के समय ही काफी पैसे का लेन देन होने के आरोप लगते थे। उसके बाद मौखिक इंटरव्यू होता था, उसमें भी वही हाल ।  इससे बचने के लिए वर्त्तमान सरकार ने सिर्फ और सिर्फ मेरिट आधारित नियुक्ति की । इससे भ्रष्टाचार पर बहुत हद तक लगाम लग गया । ये अलग बात है कि यह प्रक्रिया भी पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं कही जा सकी। 

कहीं कहीं पैसे लेकर नियोजन समिति ने कम अंकों वाले का नाम ऊपर रखने के चक्कर में ज्यादा अंकों वाले उम्मीदवारों के आवेदन पत्र रद्द कर दिए, ऐसा आरोप लगा। लेकिन ऐसी घटनायें इक्का दुक्का ही है। अब हर प्रक्रिया के कुछ फायदे के साथ साथ कुछ नुकसान भी होते हैं। यही इस बार भी हुआ। कुछ गुरूजी ने शायद नक़ल करके शैक्षणिक योग्यता प्राप्त कर ली थी। नीतीश जी के आने से पहले स्कूल और कालेजों की परीक्षाओं में कदाचार खुल के होता था , ऐसा आरोप लगते थे। 


अब फेल हुए गुरुजन को एक मौका और दिया जाएगा, ऐसा सुनने में आया है। इसमें भी अगर ये पास नहीं हुए तो इनको शिक्षण कार्य से मुक्त कर दिया जाएगा।  ऐसी घोषणा करके सरकार आलोचकों का मुँह बंद करने में काफी हद तक कामयाब हुई है। कुछ भी हो , लेकिन नियुक्तियां सिर्फ और सिर्फ मेरिट आधारित ही होनी चाहिए।  इसमें भ्रष्टाचार की कोई गुंजाईश नहीं रहती। 
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