6 नवम्बर, 2013
आज उनके भाषण की विडियो देखी मैंने। बड़ी सहजता से, जो कुछ भी घाघ कांग्रेसी उनको समझाते हैं या लिखकर देते हैं वो बोल देते हैं। मैं ये करना चाहता हूँ, मैं आपको ये अधिकार दिलवाऊंगा, मैं आपको वो दिलवाऊँगा, अब कोई भूखा नहीं सोयेगा , अब ये होगा , अब वो होगा आदि आदि। बड़ी ही सुलभता से और सहजता से अपनी बात कह देते हैं वो। बीच - बीच में भावनात्मक बातें भी करते हैं। जैसे कि मेरी दादी देश के लिए शहीद हुई , मेरे पिताजी देश के लिए कुर्बान हुए इत्यादि। शायद उनको पुराने कांग्रेसी समझाते होंगे कि इस तरह की बातें करोगे तो जनता हमारी पार्टी को वोट देगी।
लेकिन उनकी बातों में राजनितिक परिपक्वता का बिलकुल अभाव दीखता है। जैसे कि छत्तीसगढ़ कि एक सभा में उन्होंने आदिवासी महिलाओं से पूछ लिया कि वर्त्तमान सरकार के शासनकाल में आपके साथ बलात्कार हुआ कि नहीं। पंजाब में कहा कि यहाँ के ९०% युवा नशे की गिरफ्त में हैं। उत्तर प्रदेश में चुनावी सभा के दौरान लोगों से पूछ बैठे कि दिल्ली और मुम्बई में भीख मांगने क्यों जाते हो ? उस दौरान उन्होंने किसी राजनीतिक पार्टी का घोषणापत्र भी फाड़ा। फिर जिस बिल को कैबिनेट से पास करके राष्ट्रपति जी के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया था उसको बेहूदा और फाड़ने योग्य बोल दिया।
हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि ऐसे ही इनके पिताजी भी राजनीती में नए नए आये थे तो उनसे भी कांग्रेसियों ने ऐसी ही बयानबाजी करवाई थी और उसका खामियाजा भी उठाना पड़ा था उनको। उनके इरादे गलत नहीं थे लेकिन उनके बयानों का मतलब लोग कुछ और ही लगाने लगते थे। शासन के आखिरी दिनों में उनमे भी परिपक्वता आ गयी थी। लेकिन शुरुआती दिनों में उनके बयानों ने भी विरोधियों को खूब मौका दिया। उनके शासन काल में जो रक्षा मंत्री थे वही उन पर बाद में दलाली का आरोप लगाने लगे।
राहुल जी जितने भी अपरिपक्व हो लेकिन उनके विरोधी बड़े ही अनुभवी हैं। इनके भाषण को जनता कितने ध्यान से सुनती है नहीं पता, लेकिन इनके विरोधी बड़े ही गौर से सुनते हैं और इनके द्वारा कही एक एक बात का मखौल उड़ाते हैं। कई बार इनके द्वारा कही सही बातों को भी गलत साबित कर देते हैं। अब तो लोकसभा चुनाव के लिए इनके सामने जो प्रधानमंत्री पद का प्रतिद्वंदी है वो तो शायद इनके जन्म से पहले से ही राजनीती कर रहे हैं। वो इनके द्वारा कही एक एक बात का जवाब और तोड़ बड़े ही प्रभावी और चुटीले अंदाज में पेश करते हैं।
कांग्रेसियों को चाहिए कि किसी बड़े कद के और अनुभवी नेता तो सामने लाकर चुनावी मैदान में उतारे। दिल कि बात करने वाले राजनीती में बहुत कम ही सफल होते हैं। अब कोई जरूरी थोड़े ही न है कि राजनितिक परिवार से सम्बन्ध रखने वाला हर इंसान राजनीती में ही आये। एक दुसरे राहुल जी भी हैं। उनके पिता बड़े ही ओजस्वी और राजनीती के तेज तर्रार खिलाडी थे। लेकिन इनको राजनीती रास नहीं आई और वो दुसरे क्षेत्र में लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं।
0 comments:
Post a Comment