27 सितम्बर, 2013
दिल्ली में डेंगू की स्थिति भयावह हो गयी है और दिन प्रतिदिन बदतर ही होती जा रही है. हम यथाशक्ति अपना इलाज ही करवा सकते हैं और दुआ कर सकते हैं कि हमारी हालत में जल्दी से जल्दी सुधार हो. इस बात के लिये भी दुआ कर सकते हैं कि जल्दी से जल्दी मच्छरों की उत्पत्ति में सहायक यह मौसम बदल जाये. और क्या कर सकते है? या फिर सरकार को कोस सकते हैं कि उसने मच्छरों को पैदा होने से रोकने के लिये ठीक से इंतजाम नहीं किया, मच्छरों को फैलने से रोकने के लिये इंतजाम नहीं किया, मरीजों के इलाज के लिये अस्पताल में समुचित व्यवस्था नही की.
विपक्षी दल को सरकार के हर प्रयास में कमी दिख रही है इस समय में और सत्ताधारी को इन्तजामात में कोई कमी नही दिख रही है. मुख्यमंत्री कह रही है कि डेंगू से लोग मर रहे हैं और एमसीडि किसी और काम में व्यस्त है. कुल मिलकर आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है. लेकिन क्या इस तरह आरोप प्रत्यारोप से काम चलेगा? डेंगू से सरकार नहीं मरती, लोग मरते हैं. गलती चाहे सरकार की हो, लेकिन भुगत तो हम और हमारे परिवार के लोग रहे हैं. सरकार ने बचाव के उपाए बता दिये हैं कि किस तरह से मच्छरों को पनपने से रोका जा सकता है और किस तरह से मच्छरों के काटने से बचा जा सकता है.
हम या हमारा कोई परिजन बीमार पर जाये तो उसकी तीमारदारी और इलाज करवाने में हम दिन रात एक कर देते है, कोई कसर नहीं छोड़ते. क्या हम बचाव के तरीके नहीं अपना सकते ? कल एक दैनिक अखबार में फोटो देखा था कि किसी इलाके में पार्क में गंदगी की भरमार है. लोगों के बयान लिखे थे कि यहाँ सफाई कर्मचारी नहीं आते या फिर कई कई दिनों के अंतराल पर आते हैं. क्या हम ऐसे में सरकार के भरोसे बैठेंगे ? क्या मुहल्ले वाले मिलकर आस पास और पार्क की गंदगी साफ नहीं कर सकते ?
सूचना एवं संचार के माध्यमों से हर रोज बताया जाता है कि घर में पानी इकट्ठा ना होने दें, इसी में डेंगू के मच्छर पनपते हैं, लेकिन फिर भी चेकिंग के दौरान जमा पानी मिल रहा है और उसमें विद्यमान मच्छरों के लार्वा भी. यह भी बताया जाता है कि पूरी बाजू के कपड़े पहने, खास कर दिन में क्योंकि डेंगू के मच्छर दिन में ही काटते हैं. लेकिन फिर भी आधी बाजू या फिर बगैर बाजू के कपड़े और निक्कर में लोगों को देखा जा सकता है. हम सबको पता है कि पतले कपड़े के उपर से भी मच्छर काट लेते हैं, लेकिन ............., खैर छोड़िये.
हमें यह अच्छी तरह समझना होगा कि जान हमारी है और हमें ही इसकी हिफाजत करनी है. सरकार अपना काम कर रही है, लेकिन हमें भी अपनी जिम्मेवारी लेनी होगी. सिर्फ सरकार के भरोसे रहने से काम नहीं चलेगा. हम बीमार पड़ते हैं तो पीड़ा हमें सहनी पड़ती है, हमारा कोई परिजन बीमार पड़ता है तो परेशानी हमें उठानी पड़ती है, सरकार को नहीं.
डेंगू से सरकार नही मरती, इंसान मरते हैं.......
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